छोटे बजट बनाम बड़े बजट की फिल्में: भविष्य एवं सामाजिक संदर्भ
पेज 2 राजनीति, फिल्म निमार्ण एवं क्रिकेट के खेल में टीम वर्क की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसमें एकल प्रयास का सीमित महत्व है। यदि भारतीय राजनीति में अब किसी भी राजनीतिक दल को अखिल भारतीय सफलता नहीं मिल रही है तो सिनेमा में भी अखिल भारतीय सफलता अक्सर नहीं मिल रही है। इस दृष्टि से क्रिकेट के क्षेत्र में अपवाद की स्थिति है। क्षेत्रीय राजनीतिक दल छोटे बजट की फिल्मों की तरह हैं जबकि कांग्रेस, भाजपा एवं माकपा जैसी राष्ट्रीय दल बड़े बजट की फिल्मों की तरह हैं। बड़े बजट की फिल्में उत्तर भारतीय थाली की तरह का मनोरंजक व्यंजन परोसती हैं। इसमें अंतर्विरोधी स्वाद के व्यंजन होते हैं। हर व्यंजन अलग - अलग दर्शक समूह को ध्यान में रखकर परोसा जाता है। लेकिन हर व्यंजन को कलात्मक कुशलता से एक नाजुक संतुलन बैठाना होता है। थोड़ी सी चूक होते ही बड़े बजट की फिल्म धड़ाम से गिरती है। अत: ऐसी फिल्मों की पटकथा लिखना या निर्देशन करना जोखिम का काम होता है। इसके लिए जिन्दगी और समाज की अंर्तधारा को समझने का विराट अनुभव चाहिए जो भारतीय सिनेमा की परंपरा में गुरू - शिष्य श्रृंखला से प्राप्त होता रहा है। आजकल गुरू - शिष्य श्रृंखला कमजोर हुई है और नये निर्देशकों के हाथ में बड़ी बजट की फिल्मों का निर्देशन दिया जाने लगा है। यह बात ध्यान देने लायक है कि जिस तरह रिलीज के समय फिल्मों को प्रोमोट किया जाता है, करीब - करीब उसी तरह चुनाव से पहले राजनीतिक दलों को भी प्रोमोट किया जाता है। मनोविज्ञान की भाषा में इसे प्रचार या प्रोपगैंडा कहा जाता है। मीडिया की भाषा में इसे विज्ञापन कहा जाता है। पोस्टर, अखबार, टी. वी. कार्यकर्त्ता राजनीतिक दलों का उसी तरह प्रचार करते हैं जिस तरह फिल्मों का किया जाता है। इन्टरनेट का इस्तेमाल भी चुनाव प्रचार के लिए किया जाता है। इसके अलावे राजनीतिक दल चुनावी सभा करते हैं। आजकल सभा में श्रोताओं को बुलाने के लिए लोकप्रिय फिल्मी सितारों को भी बुलाया जाता है। इससे फिल्मी सितारों की चल रही फिल्मों को भी लाभ मिलता है। चुनावी सभाओं की तरह फिल्म अभिनेताओं के फैन्सक्लब भी सभायें करते हैं। खासकर दक्षिण भारत में फैन्स क्लबों का संगठन ज्यादा व्यवस्थित तरीके से काम करता है। तमिलनाडु एवं आंध्रप्रदेश की राजनीति में फिल्मी सितारों की निर्णयकारी भूमिका रही है। इसका एक बड़ा कारण मद्रास प्रेसिडेंसी में द्रविड आंदोलन की बौध्दिक जड़ो में है। द्रविड विचारक अपने को ब्राहमणवादी हिन्दू धर्म एवं संस्कृति से अलग दिखलाने की कोशिश करते रहे हैं। जिसके फलस्वरूप द्रविड कार्यकर्त्ता हिन्दू मंदिरों में जाने में हिचक अनुभव करते थे। इस हिचक की अभिव्यक्ति फिल्मी सितारों के दैवीकरण की प्रक्रिया के द्वारा होने लगा। फिल्मी सितारों को मात्र अभिनेता न मानकर दैवीय गुणों से संपन्न महामानव या देवी के रूप में होने लगा। अभिनेताओं के फैन्स क्लब बनने लगे और अभिनेत्रियों का तो बकायदा मंदिर तक बन गया। उसमें उनकी पूजा तक हुई। शिवाजी गणेशन, एम. जी. रामचन्द्रण, रजीनीकांत एवं जयललिता आदि का तमिलनाडु कल्ट विकसित हुआ। एन.टी. रामाराव एवं चिरंजीवी का आंध्रप्रदेश में कल्ट विकसित हुआ। राजकुमार का कर्नाटक में कल्ट विकसित हुआ। केरल में मोहनलाल एवं मम्मुटी के प्रशंसकों के बीच भी कल्ट जैसी ही स्थिति रही। इसके विपरीत उत्तार भारत में धर्म एवं मंदिर का महत्व काफी हद तक कायम रहा।
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